अमर शहीद वीरांगना महारानी अवंतीबाई लोधी का 187वां जन्मदिन मिठाई बांटकर मनाया गया।

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TODAY EXPRESS NEWS : फरीदाबाद। लोधी राजपूत जन कल्याण समिति रजि. फरीदाबाद द्वारा हर वर्ष की भंाति प्रथम स्वाधीनता संग्राम की अग्रणी प्रणेता अमर शहीद वीरांगना महारानी अवंतीबाई लोधी चौक एनआईटी फरीदाबाद पर शहीद का 187वां जन्मदिन मिठाई बांटकर मनाया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता महेन्द सिंह लोधी, मुख्य अतिथि मा. कर्नल ऋषिपाल गोयल, पूर्व वरिष्ठ सैनिक, विशिष्ट अतिथि प्रेमदास लोधी, प्रा.लो.रा सभा हरियाणा, एस सी वर्मा, सुरेन्द्र बबली ने दीप प्रज्जवलित कर किया।  समिति के संस्थापक लाखन सिंह लोधी ने बताया कि अमर शहीद वीरांगना महारानी अवंती बाई लोधी का जन्म मध्यप्रदेश के जबलपुर और शिवनी जिलेकी सीमा पर मनकेडी के जमीदार राव जुझार सिंह के यहां 16 अगस्त 1831 को हुआ था। अंवतीबाई लोधी का विवाह रामगढ़ के राजा विक्रमादित्या के साथ हुआ इनके दो पुत्र अमान सिंह और शेर ङ्क्षसह हुए। विक्रमादित्य की मुत्यु के बाद लार्ड डलहौजी ने राज्य में हस्तक्षेप कर एक अंग्रेज अफसर बैठा दिया। महारानी के विरोध के बावजूद येन-केन प्रकारिढ राज्य हड़पने की नीति का अनुसरण किया। महारानी ने अंग्रेजों के विरूद्ध क्रांति का बिगुल बजा दिया। जमीदारों, माल गुजारो, मुखियो को निम्र प्रकार पत्र भेजे। एक कागज का टुकडा और सादा कांच की चूडिया भिजवाई कागज पर लिखा था देश की रक्षा करो या चुडी पहनकर घर में बैठो। तुम्हे धर्म ईमान की सौगंध है जो इसका पता दुश्मन  को दे। सर्वत्र क्रान्ति की ज्वाला फैली हुई थी।  इसी दौरान शंकरशाह और उनके रघुनाथ शाह पकडे गये अंग्रजो ने इन्हे तोप से उड़ा दिया। इसका विवरण सीयू विल्स आई सीएस ने अपनी पुस्तक पृष्ठ 106 पर महारानी की वीरता का वर्णन किया है। जबलपुर डिवीजन का अंग्रेज कमिशनर मेजर अर्सकिन पत्र व्यवहार केस की फाईल 10 और 33/1857 में लिखता है कि नाराज 4000 विद्रोही महारानी अवंतीबाई के साथ हो गये है। रानी ने डिडौरी नगर की सीमा पर खेरीगंज में अपना मोर्चा जमाया। वाडिगटन भी अपनी सेना लेकर आगे बढा दोनों के मध्य भंयकर युद्ध हुआ रानी के सेना के प्रबलवेग के आगे अंग्रेजों के पैर उखड गये। 23 नवम्बर 1857 को कप्तान वाडिगंटन अपनी जान बचाकर भाग गया।  उसने पुन अपनी सहायतता के लिए जनरल हिवट लॉक, लेफिटनेंट बार्टन, लेफिटनेंट काल बार्क सेनाओ सहित बुलाया और रीवा नरेश ने अंग्रेजो की सहायता की। इस अवसर पर रूप सिंह लोधी, भुवनेशवर शर्मा, जय विजय वर्मा, पूर्ण सिंह लोधी, ओमकार लोधी, अनुराधा, शीशपाल लोधी, संजीव, नरेन्द्र लोधी, राज मंजू, ओमप्रकाश, नंद किशोर, अम्बिका शर्मा, ज्ञानेश्वर लोधी, सुमित रावत, धर्मपाल लोधी, महेन्द्र लोधी, होती लाल, विमलेश, जितेेन्द्र, भूदेवी, प्रेमपाल सिंह, डा. मेाहर सिंह, नरेन्द्र, रवि पाठक, सीताराम, विजयपाल सिंह, नरायण सिंह  अन्य सभी अतिथियो ने अपने अपने सम्बोधन में रानी के बारे में विस्तूत से जानकारी दी।

20 मार्च 1858 को अंग्रेज सेना और रानी के बीच युद्ध हुआ। 18 दिनो तक छापा मार युद्ध चलने के उपरांत रानी के बाये हाथ गोली लगी और अपने को दुश्मन से घिरा देख स्वयं की तलवार से आत्म बलिदान कर दिया। जिसका अंग्रेज अफसर एस.आर.आर.रेडमैन आईसीएस सन 1912 में प्रकाशित मण्डला गजेटियर के पृष्ठ 40 पर वर्णन किया है। 20 मार्च 1858 को मरके भी अमर हो गयी। वाडेसर ने घायलावस्था में रानी को हिन्दू सिपाहियो से श्रृद्धापुर्वक अस्पताल पहुंचाया। चेतना आने पर कैप्टन वाडेसर ने उनकी अन्तिम इच्छा पूछी तो रानी ने कहा कि इस क्रांति की जिम्मेवार मैं स्वयं हूं इन सब विद्रोहियो को छोड दिया जाये। उन्होने इस बात को मान लिया।

( टुडे एक्सप्रेस न्यूज़ के लिए अजय वर्मा की रिपोर्ट )


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