टुडे एक्सप्रेस न्यूज़। रिपोर्ट मोक्ष वर्मा। जैसे ही हम शक्ति और रंगों के पर्व नवरात्रि में प्रवेश करते हैं, अभिनेत्री ईशा कोप्पिकर इस अवसर का उपयोग समाज में आत्ममंथन, चुनौती और बदलाव की प्रेरणा के रूप में कर रही हैं। वह कहती हैं, “इस नवरात्रि, मैं सिर्फ़ देवी का उत्सव नहीं मना रही हूँ। मैं हम सभी से उनका स्वरूप खुद में उतारने का आह्वान कर रही हूँ। जब कोई महिलाएँ आवाज़ उठा रही हों, तो हमें चुप रहना छोड़ना चाहिए। अगर आप उस आवाज़ का हिस्सा नहीं हैं, तो आप उस खामोशी और समस्या का हिस्सा हैं।”
वह आगे कहती हैं, “यह सब कुछ घर से शुरू होता है। हम अपने बच्चों को समानता और सम्मान के बारे में जो सिखाते हैं या नहीं सिखाते, वही अगली पीढ़ी को आकार देगा। आइए बेहतर इंसान बनाएँ।”
सशक्तिकरण पर अपने बेबाक रुख के लिए जानी जाने वाली ईशा वास्तविक, सांस्कृतिक बदलावों पर ज़ोर देती हैं। वह कहती हैं, “एक-दूसरी औरत की साथी बनो — प्रतियोगी नहीं। सहयोग करो, साज़िश नहीं। हमें इस तरह ढाला गया है कि हम एक-दूसरे से प्रतिस्पर्धा करें, जबकि हमें एक-दूसरे को प्रोत्साहित करना चाहिए।” इस दिखावे और बाहरी मान्यता की दुनिया में ईशा का संदेश साफ़ है – “लोगों की मंज़ूरी का इंतज़ार मत करो। ज़ोर-शोर से और गर्व से खुद का जश्न मनाना शुरू करो।” विरासत में मिली मानसिकता पर बोलते हुए, वह आगे कहती हैं, “इस चक्र को तोड़ो, चाहे वह सामाजिक हो या पीढ़ियों से चला आ रहा हो। सिर्फ इसलिए कि चीज़ें हमेशा से ऐसे ही होती आई हैं, इसका मतलब ये नहीं कि आगे भी वैसे ही हों।”
उनके संदेश का अंतिम भाग साहसिक कार्रवाई का आह्वान है। वह कहती हैं, “एक कदम उठाओ। दबाव को अपने आत्मविश्वास या अपने विश्वासों को डगमगाने मत दो।” “अगर आप अपनी या किसी और महिला की सुरक्षा के लिए आवाज़ नहीं उठाएँगी, तो कौन उठाएगा?” उनकी आवाज़ और इंटेंस हो जाती है, “महिलाओं को आज़ादी उपहार में नहीं मिली है। हमें इसके लिए लड़ना पड़ा है, और हम अब भी लड़ रहे हैं।” अंत में, ईशा कहती हैं, “जागरूकता फैलाओ। ज्ञान ही शक्ति है — और हम जितने ज़्यादा जागरूक होंगे, हमें चुप कराना उतना ही मुश्किल होगा।” इस नवरात्रि, ईशा हमें एक बार फिर याद दिलाती हैं:
“देवी सिर्फ पूजने के लिए नहीं होती हैं। उन्हें जीने के लिए होती हैं।”