बार-बार यूरिन इन्फेक्शन के कारण प्रगनेंसी में आती है समस्या, आयुर्वेद में पाए समाधान- डॉ. चंचल

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टुडे एक्सप्रेस न्यूज़। रिपोर्ट अजय वर्मा। महिलाओं को अपने स्वास्थ्य पर ध्यान देने की बेहद जरूरत है। महिलाओं को यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फेक्शन यानी यूटीआई की समस्या आम है। यूरिनरी ट्रैक्ट इंफेक्शन (UTI) महिलाओं में सबसे अधिक बार होने वाले क्लिनिकल बैक्टीरियल इन्फेक्शन में से एक है, जो सभी संक्रमणों का लगभग 25% है। लगभग 50-60% महिलाएं अपने जीवनकाल में यूटीआई विकसित करती है।

आशा आयुर्वेदा की फर्टिलिटी स्पेशलिस्ट डॉ. चंचल का कहना है कि लगभग 50% महिलाएं अपने जीवनकाल में कम से कम एक यूटीआई की शिकायत करती हैं, और तीन में से एक महिला यूटीआई से पीड़ित होती है। इसमें महिलाओं को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। पेट में तेज दर्द, टॉयलेट में जलन और इन्फेक्शन की समस्या हो जाती है। जब यूटीआई होता है, तो बैक्टीरिया टॉयलेट का इस्तेमाल करते समय प्रवेश करते हैं, और कभी-कभी वे किडनी, मूत्राशय और उन्हें जोड़ने वाली नलियों को भी प्रभावित करते हैं।

डॉ. चंचल का मानना है कि महिलाओं में यूटीआई उनके छोटे मूत्र पथ के कारण बहुत आम है। यूटीआई गर्भाशय, मूत्राशय, किडनी जैसे अंगों को प्रभावित कर सकता है। अगर किसी को बार-बार यूटीआई का अनुभव होता है, तो संबंधित पेल्विक सूजन के कारण गर्भधारण करना मुश्किल हो सकता है, जो फैलोपियन ट्यूब में घाव का कारण बन सकता है या ओव्यूलेशन प्रक्रिया को प्रभावित कर सकता है। जिससे महिला को कंसीव करने में दिक्कत आती है।

वैसे तो यूटीआई को आमतौर पर प्रजनन समस्याओं के लिए सीधे तौर पर दोषी नहीं ठहराया जाता है, लेकिन निसंतानता को जेनिटल और यूरिनरी ट्रैक्ट के संक्रमण से जोड़ा गया है। अधिकतार बार यौन संचारित इंफेक्शन (STD) क्लैमाइडिया जैसे इंफेक्शन या फिर अन्य इंफेक्शन भी सूजन संबंधी बीमारी का कारण बन सकते हैं।

डॉ. चंचल का कहना है कि यूटीआई के चार प्रकार में पहला यूरेथ्राइटिस जो मूत्रमार्ग को प्रभावित करता है। दूसरा सिस्टिटिस जो मूत्राशय को प्रभावित करता है। तीसरा पायलोनेफ्राइटिस जो गुर्दे को प्रभावित करता है। और आखिरी वैजिनाइटिस जो योनि को प्रभावित करता है।

डॉ. चंचल का कहना आयुर्वेद एक प्राचीन चिकित्सा विज्ञान है। आयुर्वेद उपचार का उद्देश्य मन, शरीर और आत्मा को ठीक करने और पुनर्जीवित करने के लिए जीवनशैली, आहार और जड़ी-बूटियों के उपयोग को संतुलित किया जाता है। आयुर्वेद दोषों पर काम करता है जो हर किसी में मौजूद होते हैं- वात, पित्त और कफ। आयुर्वेद में, यूरिनरी ट्रैक्ट इंफेक्शन (यूटीआई) को “मूत्रकृच्छ्र” या “मूत्रवाह स्रोत” विकार कहा जाता है। यूटीआई पित्त दोष के असंतुलन के कारण होता है जोकि आयुर्वेदिक उपचार से इलाज करना संभव है।

आयुर्वेद द्वारा प्राकृतिक और सरल तरीकों से हानिकारक बैक्टीरिया से लड़कर शरीर के बैक्टीरिया संतुलन को बहाल किया जाता है। आयुर्वेद विकारों में यूरिनरी इंफेक्शन के ट्रीटमेंट में डिटॉक्सिफिकेशन के साथ संक्रमण को बाहर निकालना, यूरिनरी ट्रैक्ट की रुकावटों को साफ करना और जड़ी-बूटियों का सेवन करना शामिल है जो कि गुर्दे को टोन करते हैं और अपान वायु के कामकाज को सामान्य करते हैं। एक परिवार शुरू करने के लिए सबसे जरूरी चीज है कि आप शारीरिक और मानसिक दोनों तरह से मजबूत हों। इस इलाज की सबसे अच्छी बात ये है कि बिना सर्जरी, बिना किसी साइड इफेक्ट के नेचुरल तरीके से गर्भधारण करने में मदद करता है।

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