बढ़ती गर्मी के साथ पशुंपालको को अपने पशुओं की सुरक्षा को लेकर सतर्क रहने की आवश्यक्ता है : डा. नीलम आर्य

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Today Express News / Report / Ajay verma / Faridabad / फरीदाबाद, 27 मई। बढ़ती गर्मी के साथ पशुंपालको को अपने पशुओं की सुरक्षा को लेकर सतर्क रहने की आवश्यक्ता है। बदलते मौसम के पशुओं के रहन-सहन के साथ-साथ चारे-पानी पर भी ध्यान देना चाहिए। पशुपालन एवं डेयरी विभाग की उप निदेशक डा. नीलम आर्य ने बताया कि इस गर्मी में पशुओं के चारे पर ध्यान न देने से दूध की क्षमता में कमी आ सकती है। पशुओं पर गर्मी का प्रभाव: मई में गर्मी बढने से पशुओं के शरीर में पानी के साथ-साथ अन्य खनीज प्रदाथों की कमी होने लगती है। गर्मी के कारण पशुओं में बीमारी से लडने की क्षमता भी कम हो जाती है तथा वह शारीरिक तौर से कमजोर हो जाते हैं। ऐसे करे पशुओं का रखरखाव: पशुओं को छायादार स्थान पर बांधना चाहिए। जमीन के ऊपर रेत डालकर अच्छी तरह से पानी का छिड़काव किया जाना चाहिए। यदि पशुओं कों कमरे या टीन शेड में बांधकर रखा जाता है तो इस बात का विशेष ध्यान रखे कि वह स्थान हवादार होना चाहिए। पक्की छत के मकान में वेंटिलेटर लगे होने चाहिए। ज्यादा गर्मी पड़ने पर पशुओं को दो-तीन बार स्नान करएं। ऐंसे करे खनिज लवण की पूर्ति: पशुओं को नमक की पूर्ति करने के लिये पशु बांधने के स्थान पर सफाई के साथ-साथ पशुओं की खोर में साबुत सेंधा नमक का बड़ा टुकडा अवश्य रखें तथा समय-समय पर पशुओं को कैल्सियम की उचित खुराक देनी चाहिए। कैल्सियम की कमी से पशुओं में कई बीमारी जन्म लेती हैं। संक्रमण से कैसे करंे बचाव: पशुओं में गर्मी के मौसम में संक्रमण ज्यादा तैजी से फैलता है, जिसका बचाव करने के लिए पशुओं के चारा खाने वाले स्थान (खोर) की नियमित रूप से साफ-सफाई कर धुलाई करनी चाहिए। बासी चारा खाने से पशुओं में बीमारी हो सकती हैं। पशु बांधने वाले स्थान के चारों ओर चूने का छिड़काव कर संक्रमण से बचाया जा सकता है। डा. नीलम आर्य, उपनिदेशक, पशुपालन एवं डेरिंग, फरीदाबाद ने बताया कि गर्मी के मौसम में दुधारू पशुओं को दाने की उचित मात्रा देते रहे। दाने में गेहूं, जई, चने का छिलका, गेंहु का चोकर, पीसा नमक, गुड़ की शक्कर मिलाकर देने से पशुआंे में दूध उत्पादन ठीक रहता है तथा पशु स्वस्थ रहते हैं। कुछ पशुपालक अपने पशुओं को हरा चारा नहीं खिलाते हैं, जिसके कारण पशुओं में पानी की कमी हो जाती है। गर्मी के मौसम में पशुओं का सूखा भूसा खिलाया जाता है जिसमें पानी की मात्रा नहीं होती है। कुछ पशुपालक अपने पशुओं को हरे चारे के स्थान पर पौष्टिक प्रदार्थ खिलाते है। पौष्टिक प्रदार्थ खाने से पशु को हरे चारे की जरूरत नहीं रहती है, जो गलत है। पशुओं को सूखे भूस पर आश्रित न रखकर हरा चारा भी अवश्य दें।

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