वैष्णोदेवी मंदिर मंदिर में रामनवमी पर की गई पूजा, महामारी के खात्मे के लिए हुई प्रार्थना

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Today Express News / Report / Ajay Verma / नवरात्रों के नौवें दिन वैष्णोदेवी मंदिर में भगवान श्रीराम की पूजा अर्चना की गई। इस अवसर पर प्रातकालीन आरती में मंदिर के पुजारियों ने भगवान श्रीराम व सीता मैया की पूजा अर्चना की। मंदिर संस्थान के प्रधान जगदीश भाटिया ने शहर वासियों को रामनवमी की बधाई दी और कहा कि इस नवरात्रों में सभी देवियों एवं भगवान श्रीराम से कोरोना महामारी के जल्द से जल्द खात्मे की प्रार्थना की गई है। उन्हें उम्मीद है कि यह बीमारी जल्द से जल्द पूरे विश्व से समाप्त हो जाएगी और मानव जीवन फिर से पटरी पर आ जाएगा। उन्होंने इस शुभ अवसर पर भगवान श्रीराम की महिमा का बखान करते हुए कहा कि हिन्‍दू पौराणिक मान्‍यताओं के अनुसार चैत्र माह की शुक्‍ल पक्ष की नवमी को श्री हरि विष्‍णु के अवतार श्री राम ने मनुष्‍य रूप में जन्‍म लिया था. मर्यादा पुरुषोत्तम राम के जन्‍मोत्‍सव को न स‍िर्फ भारत में बल्‍कि विदेशों में रह रहे हिन्‍दू भी राम नवमी के रूप में मनाते हैं. इस दिन मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना की जाती है और पूरा माहौल राममय हो जाता है.

भगवान श्री राम के जन्म की कथा का वर्णन वाल्मिकी रामायण  और रामचरितमानस दोनों में ही मिलता है. जहां महर्षि वाल्मिकी श्री राम को मानव मात्र के रूप में वर्णित करते हैं, वहीं, महाकवि तुलसीदास उन्हें ईश्वर बताते हुए उनकी व्‍याख्‍या करते हैं. कथा के मुताबिक अयोध्या नरेश दशरथ की तीन पत्नियां थी, किसी तरह का कोई दुख नहीं था लेकिन एक चिंता थी कि तीनों रानियों में से किसी से भी पुत्र प्राप्ति न होने से राज्य के उत्तराधिकारी का संकट छा रहा था. तब महाराज दशरथ की गुरुमाता महर्षि वशिष्‍ठ की पत्नी ने इस पर चिंता जताते हुए अपनी शंका जाहिर की कि “आपके शिष्य पुत्र विहीन हैं ऐसे में राज-पाट को उनके बाद कौन संभालेगा?” तब महर्षि बोले कि “जब दशरथ के मन में यह विषय है ही नहीं तो फिर बात कैसे आगे बढ़ सकती है.” तब गुरुमाता एक दिन अपने पुत्र को गोद में लेकर दशरथ के महल में जा पंहुची. गुरु मां की गोद में बालक को देखकर दशरथ लाड़ लड़ाने लगे. तब गुरु मां ने कहा कि “आप तो महर्षि के शिष्य हैं, लेकिन आपका तो कोई पुत्र नहीं है.

ऐसे में इसका शिष्य कौन बनेगा.” गुरु मां के वचन सुनकर दशरथ को ग्लानि हुई और वे महर्षि वशिष्ठ से पुत्र प्राप्ति के उपाय हेतु उनके चरणों में गिर पड़े.  इस पर महर्षि ने कहा कि “आपको पुत्र प्राप्ति तो हो सकती है लेकिन उसके लिए पुत्रेष्ठि यज्ञ करवाना पड़ेगा.” तब दशरथ बोले- “गुरुदेव तो देर किस बात की है जब चाहे आप शुरू कर सकते हैं.” तब महर्षि बोले- “राजन! यह इतना सरल नहीं है. जो भी पुत्रेष्ठि यज्ञ करेगा उसे अपनी पूरे जीवन की साधना की इस यज्ञ में आहुति देनी पड़ेगी.” दशरथ चिंतित हुए बोले- “हे ऋषि श्रेष्ठ! ऐसा करने के लिए कौन तैयार हो सकता है?” फिर उन्होंने दशरथ की पुत्री शांता की याद दिलाई जिसे उन्होंने रोमपाद नामक राजा को गोद दे दिया था और उन्होंने शांता का विवाह ऋंग ऋषि से किया था.

महर्षि बोले यदि शांता चाहे तो ऋंग ऋषि से यह यज्ञ करवाया जा सकता है. तब शांता ने अपने पति ऋषि ऋंग को इसके लिये तैयार किया बदले में इतना धन उन्हें दान में दिया गया जो उनकी अपनी संतान के भरण-पोषण के लिए जीवन पर्यंत पर्याप्त रहे.  यज्ञ करवाया गया और हवन कुंड से प्राप्त खीर तीनों रानियों कौशल्‍या, सुमित्रा और कैकेयी को दी गई. प्रसाद ग्रहण करने से तीनों रानियों ने गर्भधारण किया और चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को पुनर्वसु नक्षत्र में सूर्य, मंगल, शनि, बृहस्पति तथा शुक्र जब अपने उच्च स्थानों में विराजमान थे तब कर्क लग्न का उदय होते ही माता कौशल्या के गर्भ से भगवान श्री विष्णु श्री राम रूप में अवतरित हुए. इनके पश्चात शुभ नक्षत्रों में ही कैकेयी से भरत व सुमित्रा से लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने जन्म लिया.

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