टुडे एक्सप्रेस न्यूज़। रिपोर्ट मोक्ष वर्मा। मुंबई, “कुछ यात्राएँ पूरा सर्कल में लौटती हैं – न केवल पुरानी यादों के लिए, बल्कि एक उद्देश्य के लिए।”
‘क्योंकि सास भी कभी बहू थी’ में वापसी करना सिर्फ़ एक भूमिका में वापस जाना नहीं है, बल्कि उस कहानी की ओर लौटना है जिसने भारतीय टेलीविजन को नई परिभाषा दी और मेरी ज़िंदगी को भी एक नई दिशा दी। इसने मुझे व्यावसायिक सफलता से कहीं ज़्यादा दिया – इसने मुझे लाखों घरों से जुड़ने का मौक़ा दिया, एक पीढ़ी की भावनात्मक संरचना में मेरी एक जगह दी।
पिछले 25 वर्षों में मैंने दो प्रभावशाली मंचों—मीडिया और सार्वजनिक नीति—पर काम किया है, जिनमें से प्रत्येक का अपना प्रभाव है, और प्रत्येक के लिए अलग तरह की प्रतिबद्धता की ज़रूरत होती है।
आज मैं एक ऐसे मोड़ पर खड़ी हूं जहाँ अनुभव भावनाओं से मिलता है, और रचनात्मकता दृढ़ विश्वास से। मैं केवल एक कलाकार के रूप में नहीं लौट रही, बल्कि एक ऐसी व्यक्ति के रूप में लौट रही हूं जो मानती है कि कहानी कहने की शक्ति में बदलाव लाने, संस्कृति को संजोने और सहानुभूति पैदा करने में विश्वास करती है।
इस अगले अध्याय में योगदान देकर, मैं ‘क्योंकि…’ की विरासत को सम्मान देना चाहती हूं—और उस भविष्य को आकार देने में मदद करना चाहती हूं जहाँ भारत की रचनात्मक उद्योग केवल सराही न जाए, बल्कि वास्तव में सशक्त हो।